गणेश सिंह बिष्ट
हर पांच साल में एक बार भारतीय गणतंत्र का चुनावी मेला आता है। कई लोगों को इस मेले का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। कोई प्रत्याशी के रूप में इंतजार कर रहा होता है, और कोई अपने प्रत्याशी का सच्चा समर्थक बनकर इस अवसर का इंतजार कर रहा होता है। इस मेले के दौरान राजनीतिक दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों के मध्य जोरदार दंगल देखने को मिलता है। चुनावी मैंदान का हर कोई प्रत्याशी गांव व क्षेत्र के विकास का एजेण्डा लिये फिरता है, और स्वयं को योग्य साबित करने के लिए येन-केन-प्रकारेण जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। प्रत्याशियों द्वारा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकतानुसार प्रभावित करने के भरसक लुभावने प्रयास किये जाते हैं, ताकि अपनी जीत के लिए उनका मत हासिल किया जा सके। चुनावी दंगल में भीतरखाने शाम, दाम, दण्ड व भेद सभी हथकण्डे अपनाये जाते हैं। प्रत्येक प्रत्याशी जनता-जनार्दन को अपने सरआँखों पर बिठाये घूमता नजर आता है, और हो भी क्यों न? आंखिर जनता के अमूल्य मत से ही तो किसी भी प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित होती है। पांच साल में एक बार वह एक दिन आ ही जाता है, जब जनता के हाथ में यह निर्णय लेने का अवसर होता है कि वह एक योग्य प्रत्याशी को अपना नेता चुने या फिर किसी भी अयोग्य व्यक्ति का चुनाव करके अगले पांच साल फटे-हाल में गुजारने का फैसला कर ले। वास्तव में सम्पूर्ण क्षेत्र के विकास की डोर जनता के हाथ में होती है। जनता चाहे तो एक योग्य, कर्मठ व जनसेवा लिए समर्पित व्यक्ति को अपना नेता चुनकर अपने क्षेत्र के विकास में योगदान दे सकती है अन्यथा की स्थिति में किसी भी अयोग्य व्यक्ति को चुनकर अपने क्षेत्र के विकास में बाधक हो सकती है।
हमारे समाज की बिडम्बना यह है कि हम अपने जनप्रतिनिधि यानि नेता से खुश नहीं रह सकते हैं। क्षेत्र का विकास न हो पाने का जिम्मेदार भी हम अपने द्वारा चुने गये नेता को ही मानते हैं। जब हम अपने जनप्रतिनिधि पर आरोप लगा कर उसकी अयोग्यता के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं, तब हमें यह याद ही नहीं रहता है कि उस व्यक्ति को हम ही ने अपना अमूल्य मत देकर जनप्रतिनिधि चुना था। आज जो व्यक्ति अयोग्य घोषित किया जा रहा है, वह चुनाव से पहले योग्य कैसे हो सकता था? हम अपनी गलती को कभी स्वीकार ही नहीं करते हैं और सारा ठींकरा अपने जनप्रतिनिधि के सिर पर फोड़ देते हैं। जब हमारे पास अवसर होता है तब हम गधे को ताज पहना देते हैं उसके बाद पूरे पांच वर्ष उस उस गधे का गुणगान करते रहते हैं। जब कभी भी हमारे मन की न हुई तो वह गधा हमारी नजर में बुरा हो जाता है, क्षेत्र के पिछड़ते विकास के लिए जिम्मेदार हो जाता है, और हम दुनियाभर में उसकी अयोग्यता के प्रमाण प्रस्तुत करने लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है; जब हम सामाजिक हित को न देखते हुए व्यक्तिगत स्वार्थ के आधार किसी व्यक्ति को अपना नेता चुनने का फैसला कर लेते हैं, जब हम किसी व्यक्ति की योग्यता को परखे बिना ही उसे अपना मतदान कर देते हैं, जब हम किसी व्यक्ति के विकास लक्ष्यों को जाने बिना ही उसे मतदान कर देते हैं, और जब हम स्वयं विचार न करके किसी परिचित या स्वजन के दबाव में आकर किसी व्यक्ति के पक्ष में मतदान का फैसला लेते हैं।
बात अपने पहाड़ी क्षेत्र की करें तो अक्सर यह दिखने को मिलता है कि लोगों का मत हासिल करने के लिए अधिकांशतः नशा परोसा जाता है। कुछ लोग पहले से नशे के आदी होते हैं, जिन्हें खुश करने के लिए प्रत्याशियों द्वारा नशा परोसने का पूरा इंतजाम कर दिया जाता है। ऐसा प्रत्याशी नसेड़ी मतदाताओं का मसीहा बनकर आया होता है। चुनाव काल में मुफ्त की ‘दारू और मुर्गा’ नसेड़ियों का प्रिय आहार होता है। नेता जी के चम्चों के पास भी यही वह अवसर होता है जब वे मुफ्त की शराब और तामसिक आहार का पूर्ण आनन्द ले रहे होते हैं। नेता जी के चम्चों की पूर्ण जिम्मेदारी होती है कि वे क्षेत्र की प्रत्येक चुनावी हलचल पर अपनी पैनी निगाहें गढ़ाये रहते हैं, और पूरे दिनभर की ताजा खबरें अपने नेताजी के समक्ष प्रस्तुत कर रहे होते हैं। उसके बाद नेता जी मतदाताओं का बहुमूल्य मत प्राप्त करने के लिए शाम, दाम, दण्ड व भेद की रणनीति तैयार कर विजयपथ की ओर प्रस्थान करते हैं। ऐसा जरूरी नहीं है कि कोई योग्य, कर्मठ, सघर्षशील व ईमानदार प्रत्याशी ही इस प्रकार का नेता बने अपितु इसके विपरीत एक अयोग्य, नकारा, झगड़ालू, गुण्डा व बेईमान प्रकृति का व्यक्ति इस प्रकार का नेता बनने की अधिक पात्रता रखता है। एक बार यदि किसी अयोग्य व्यक्ति ने चुनाव जीत लिया तो फिर क्या होता है यह बताने की आवश्यकता शायद नहीं है। ऐसे में हम किसी अयोग्य व्यक्ति का चुनाव करके कौन से विकास की उम्मीद कर सकते हैं? यह एक विचारणीय प्रश्न है। सर्वप्रथम यह जानना अति आवश्यक है कि वास्तव में क्षेत्र का विकास होता क्या है? आधुनिक युग में किसी भी क्षेत्र के विकास के मूल आधार हैं; सभी के लिए पर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों (जिसमें बिजली व पेयजल भी शामिल है) की उपलब्धता, सभी के लिए आवश्यक व समान उचित शिक्षा, नजदीकी उचित स्वास्थ्य व्यवस्थायें, नजदीकी उचित रोजगार/ स्वरोजगार के संसाधन, उचित संचार व्यवस्थायें और त्वरित प्रशासनिक व न्यायिक सेवायें। जिस भी क्षेत्र में उपरोक्त सभी सेवाओं व व्यवस्थाओं की उपलब्धता बनी रहती है, वहां विकास तेजी से दौड़ता है, और लोग भी खुश रहते हैं। हमारे जनप्रतिनियों को अपना ध्यान उपरोक्त व्यवस्थाओं के विकास पर केंद्रित करना चाहिए। यह तभी संभव होगा जब हम अपने मतदान से किसी वास्तव में योग्य, शिक्षित, कर्मठ, व संघर्षशील नेता का चुनाव करेंगे। ईमानदारी के गुण को राजनीति से परे रखा जाना ही उचित है, क्योंकि कोई भी नेता मेरी दृष्टि में ईमानदार नहीं हो सकता है, और जो ईमानदार है वह नेता नहीं बन सकता है।
चुनाव के इस दंगल की निर्णायक जनता यानि आप और हम सब हैं। अतः हमें चाहिए कि हम अपना निर्णय बहुत ही सोच- विचार कर लें और वास्तव में किसी योग्य शिक्षित, कर्मठ, व संघर्षशील प्रत्याशी को ही अपना नेता चुनें। व्यक्तिगत स्वार्थ से परे सार्वजनिक हित में फैसला लेते हुए अपना मतदान अवश्य करें। चुनावी दंगल में ‘मतभेद’ हो परन्तु ‘मनभेद’ न उपजे। हमारे मार्ग अलग हों, आपस में विचार अलग हो कोई फर्क नहीं पड़ता, किन्तु हमारे मनों में मैल नहीं होना चाहिए।
सह सम्पादक